Saturday, December 26, 2015

संग्रहणी लक्षण और घरेलू उपचार

संग्रहणी लक्षण और घरेलू उपचार
.
संग्रहणी
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संग्रहणी लक्षण और घरेलू उपचार
संग्रहणी :-
मंदाग्नि के कारण भोजन न पचने पर अजीर्ण
होकर दस्त लगते लगते हैं तो यही दस्त
संग्रहणी कहलाती है। अर्थात् खाना खाने
के बाद तुरंत ही शौच होना या खाने के
बाद थोड़ी देर में अधपचा या अपरिपक्व मल
निकलना संग्रहणी कही जाती है। इस रोग
के कारण अन्न कभी पचकर, कभी बिना पचे,
कभी पतला, कभी गाढ़ा कष्ट या दुर्गंध के
साथ शौच के रूप में निकलता है। शरीर में
दुर्बलता आ जाती है।
वातज संग्रहणी :-
जो मनुष्य वातज पदार्थों का भक्षण करे,
मिथ्या आहार-विहार करे और अति मैथुन
करे तो बादी कुपित होकर जठराग्नि को
बिगाड़ देती है। तब वातज संग्रहणी उत्पन्न
होती है।
पित्तज संग्रहणी :-
जो पुरुष गरम वस्तु का सेवन अधिक करे, मिर्च
आदि तीक्ष्ण, खट्टे और खारे पदार्थ खाए
तो उसका पित्त दूषित होकर जठराग्नि
को बुझा देता है। उसका कच्चा मल निकलने
लगता है तब पित्तज संग्रहणी होती है।
कफज संग्रहणी :-
जो पुरुष भारी, चिकनी व शीतल वस्तु
खाते हैं तथा भोजन करके सो जाते हैं, उस
पुरुष का कफ कुपित होकर जठराग्नि को
नष्ट कर देता है।
लक्षण :-
वातज :-
खाया हुआ आहार कष्ट से पचे, कंठ सूखे, भूख न
लगे, प्यास अधिक लगे, कानों में भन-भन
होना, जाँघों व नाभि में पीड़ा होना
आदि।
पित्तज :-
कच्चा मल निकले, पीले वर्ण का पानी मल
सहित गुदाद्वार से निकलना और खट्टी
डकारें आना।
कफज :-
अन्न कष्ट से पचे, हृदय में पीड़ा, वमन और
अरुचि हो, मुँह मीठा रहे, खाँसी, पीनस,
गरिष्ठता और मीठी डकारें आना।
घरेलू उपचार :-
1…….. सोंठ, पीपल, पीपलामूल, चव्य एवं
चित्रक का 8 ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध से
बनी छाछ के साथ पिएँ, ऊपर से दो-चार
बार और भी छाछ पिएँ तो वात संग्रहणी
दूर होगी।
2………. 8 ग्राम शुद्ध गंधक, 4 ग्राम शुद्ध पारद
की कजली, 10 ग्राम सोंठ, 8 ग्राम काली
मिर्च, 10 ग्राम पीपली, 10 ग्राम पांचों
नमक, 20 ग्राम सेंकी हुई अजवायन, 20 ग्राम
भूनी हुई हींग, 24 ग्राम सेंका सुहागा और
एक पैसे भर भुनी हुई भाँग-इन सबको पीसकर-
छानकर कजली मिला दें। उसके बाद इसे दो
दिन बाद भी पीसें तो चूर्ण बन जाए। यह 2
या 4 ग्राम चूर्ण गाय के दूध से बनी छाछ के
साथ पीने से वात संग्रहणी मिटती है।
3……….. जायफल, चित्रक, श्वेत चंदन,
वायविडंग, इलायची, भीमसेनी कपूर,
वंशलोचन, जीरा, सोंठ, काली मिर्च,
पीपली, तगर, पत्रज और लवंग बराबर-बराबर
लेकर चूर्ण बनाकर इन सबके चूर्ण से दुगुनी
मिश्री और थोड़ी बिना सेंकी भाँग-ये
सब मिलाकर इसमें से 4 या 6 ग्राम चूर्ण गाय
के दूध की छाछ के साथ पंद्रह दिनों तक सेवन
करें तो पित्त संग्रहणी दूर होगी।
4……… रसोत, अतीस, इंद्रयव, तज, धावड़े के
फूल सबका 8 ग्राम चूर्ण गाय के दूध की छाछ
के साथ या चावल के पानी के साथ पंद्रह
दिनों तक लें तो पित्त संग्रहणी नष्ट
होगी।
5……… हरड़ की छाल, पिप्पली, सोंठ,
चित्रक, सेंधा नमक और काली मिर्च का 8
ग्राम चूर्ण नित्य गाय के दूध की छाछ के
साथ पंद्रह दिन तक सेवन करें तो कफ संग्रहणी
दूर होगी।
6…….प्रातः एवं साँय रामबाण रस सादे
पानी के साथ। दोपहर मे 250 मिलीग्राम
सिद्ध्प्राणेश्वर चावल के पानी से लेने से
संग्रहणी रोग से मुक्ति मिलती है।
सभी प्रकार के उदर रोग के लिए शंख भस्म
125 मिलीग्राम, सिद्धप्राणेश्वर 125
मिलीग्राम, रामबाण रस 125
मिलीग्राम, स्वर्ण पर्पटी 60 मिलीग्राम,
मकरध्वज 60 मिलीग्राम इन सबको मिलाकर
दो पुड़िया बनाकर सुबह शाम भुने हुए जीरे
और शहद के साथ लें।
प्रातःकाल मूंग-चावल की खिचड़ी खाएं।
शाम को शुद्ध घी का हलवा खाने से इस
रोग का निदान हो जाता है।

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